आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड


दो०- भरत सपथ तोहि सत्य कहु, परिहरि कपट दुराउ।
हरष समय बिसमउ करसि, कारन मोहि सुनाउ॥१५॥


तुझे भरत की सौगन्ध है, छल-कपट छोड़कर सच-सच कह। तू हर्ष के समय विषाद कर रही है, मुझे इसका कारण सुना॥ १५॥


एकहिं बार आस सब पूजी।
अब कछु कहब जीभ करि दूजी।
फोरै जोगु कपारु अभागा।
भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा॥


 [मन्थराने कहा-] सारी आशाएँ तो एक ही बार कहने में पूरी हो गयीं। अब तो दूसरी जीभ लगाकर कुछ कहूँगी। मेरा अभागा कपाल तो फोड़ने ही योग्य है, जो अच्छी बात कहने पर भी आपको दुःख होता है॥१॥

 
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई।
ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई॥
 हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती।
नाहिं त मौन रहब दिनु राती॥

 
जो झूठी-सच्ची बातें बनाकर कहते हैं, हे माई! वे ही तुम्हें प्रिय हैं और मैं कड़वी लगती हूँ ! अब मैं भी ठकुरसुहाती (मुँहदेखी) कहा करूँगी। नहीं तो दिन रात चुप रहूँगी॥२॥


करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा।
बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा॥
कोउ नृप होउ हमहि का हानी।
चेरि छाड़ि अब होब कि रानी॥


विधाता ने कुरूप बनाकर मुझे परवश कर दिया! [दूसरे को क्या दोष] जो बोया सो काटती हूँ, दिया सो पाती हूँ। कोई भी राजा हो, हमारी क्या हानि है ? दासी छोड़कर क्या अब मैं रानी होऊँगी! (अर्थात् रानी तो होने से रही)॥३॥


जारै जोगु सुभाउ हमारा।
अनभल देखि न जाइ तुम्हारा।
तातें कछुक बात अनुसारी।
छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी॥


हमारा स्वभाव तो जलाने ही योग्य है। क्योंकि तुम्हारा अहित मुझसे देखा नहीं जाता। इसीलिये कुछ बात चलायी थी। किन्तु हे देवि! हमारी बड़ी भूल हुई, क्षमा करो॥ ४॥

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    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना

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